Secularism is in the DNA of the people of India: Vice President
Provide training to children to make them responsible citizens;
Releases book titled Sahas Ka Doosra Naam Zindagee
The Vice President of India, Shri M. Venkaiah Naidu has said that secularism is in the DNA of the people of India and one need not remind the same. He was addressing the gathering after releasing the book titled ‘Sahas Ka Doosra Naam Zindagee’ authored by Shri Sanjeev Gupta, here today.
The Vice President said that it is very important to provide training to all the children of the country to make them responsible citizens and they must be shining examples for the next generation. He further said that children are the future of any nation and society, parents and teachers must create an environment to help children become role models. Students or children must be taught about the values during their school education, it must be made part in their curriculum, he added.
The Vice President said that children must be taught about national leaders like Gandhiji, Chatrapati Shivaji, Subhash Chandra Bose and other leaders. The book highlighting brave stories of award winning children must be an inspiration, he added.
Following is the text of Vice President’s address in Hindi:
“सबसे पहले मैं लेखक और पत्रकार श्री संजीव गुप्ता जी को उनकी पुस्तक “पुरस्कृत बच्चों की प्रेरक साहसी कथाएँ” के लिए बधाई देता हूँ। साथ-साथ इस महत्वपूर्ण पुस्तक के प्रकाशन के लिए ‘किताबघर प्रकाशन’ को हार्दिक बधाई देता हूँ।
श्री संजीव गुप्ता जी का यह कार्य सराहनीय है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इस श्रृंखला में यह उनकी सातवीं पुस्तक है। ये कहानियाँ उन बहादुर बच्चों की हैं जो अपने अदम्य साहस, संयम और सूझ-बूझ के दम पर दूसरों की जिंदगियां बचाने में कामयाब हुए।
यह एक प्रेरणादायी पुस्तक है। मुझे आशा है कि यह पुस्तक एक संदेश देने में सफल होगी कि ‘साहस का दूसरा नाम जिंदगी’ है। साधारणत: हम सभी अपने लिए जीवन जीते हैं, परंतु वह जीवन श्रेष्ठ है जो दूसरों के लिए जीया जाता है। यह कहना आसान है, लेकिन खुद अपने जीवन में पालन करना सरल नहीं है। इन बच्चों ने दूसरों की रक्षा और सहायता में अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह हमें सदैव याद रहेगा।
हम सभी जानते हैं कि हर साल ऐसे असाधारण रूप से साहसी बच्चों को ‘राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाता है। पूरा देश इन बच्चों का हृदय से अभिनंदन करता है।
बच्चे राष्ट्र का भविष्य हैं। जिस देश के बच्चे वीर हैं, दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावर करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं, उस देश का सिर हमेशा ऊँचा रहेगा।
मैं यह मानता हूँ कि समाज में साहसी लोगों का होना ज़रूरी है। यदि ऐसा नहीं होगा तो समाज की नींव कमजोर हो जाएगी। कोई भी देश कमजोर नींव पर सुरक्षित नहीं रह सकता। इन साहसी बच्चों की वीरगाथा के पीछे निश्चित ही अपने प्राणों से ज्यादा दूसरे के प्राणों को बचाने जज्बा था। किसी के लिए कुछ कर गुजरने का भाव मन में था। इसी भावना के कारण वे खतरों से खेलने वाले वीर बच्चे बने।
जुए और सट्टे के अवैध व्यवसाय के खिलाफ आवाज उठाने वाली आगरा की नाज़िया; मुथू को डूबने से बचाने में प्राणों को बलिदान करने वाली कर्नाटक की नेत्रावती; खुद बुरी तरह बस दुर्घटना में घायल होते हुए भी सात बच्चों को बचानेवाले पंजाब के करनबीर सिंह; आग की लपटों से घिरे बच्चे को बचानेवाले मेघालय के बेट्श्वाजॉन पेनलांग का साहस और बहुत सारे बच्चों की ऐसी साहसिक कहानियों में हमें एक बात समान रूप से देखने को मिलती है कि जो डर को पार कर गया, वह जीत गया। ऐसे साहसी बच्चे एक नई कहानी लिखते हैं। और इन कहानियों में तीन वे बच्चे भी शामिल हैं जिन्होंने दूसरों की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इस अवसर पर, मैं उन बच्चों के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देता हूँ।
पुरस्कृत बच्चों में ज्यादातर वे बच्चे हैं जो देश के दूरदराज के गाँव के रहनेवाले हैं। इन बच्चों ने रोज के जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने अदम्य साहस का परिचय दिया है। मैं उनके माता पिता और शिक्षकों को नमन करता हूँ जिन्होंने इन बच्चों को साहसी और बहादुर बनाने में प्रेरणा दी। माता-पिता और गुरु का स्थान हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण होता है।
मैं यह मानता हूँ कि यह पुस्तक देश के अन्य बच्चे पढ़ेंगे तो उन्हें भी समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलेगी। आज हमें ऐसे वीर बच्चों पर गर्व है।
आज हमारे समाज के लिए यह बहुत आवश्यक है कि बच्चों को देश के एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए बचपन से ही शिक्षा दी जाए। सामाजिक संदेशों को प्रसारित करने और सामाजिक बुराइयों को मिटाने के लिए बच्चे ही सही संदेशवाहक होते हैं। देश में बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करने के क्रम में यह महत्वपूर्ण है कि समाज की मानसिकता में बदलाव लाया जाये। बच्चों के प्रति बढ़ते हुए अपराध चिन्ता का विषय हैं।
इस अवसर पर मैं माता-पिताओं से भी कहना चाहूँगा कि वे बच्चों में आलस्य, अनुशासनहीनता और बढ़ती हिंसा आदि की जिम्मेदारी अधिकांशत: स्कूल या सामाजिक परिवेश या संगति पर डाल देते हैं। किन्तु तथ्य यह है कि इनमें से अधिकांश बुराइयों के लिए पारिवारिक परिवेश भी उतना ही उत्तरदायी होता है। हाल ही में स्कूलों में घटी हिंसा की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए और बच्चों में बढ़ती आक्रामकता (Aggression) की ओर भी ध्यान दिलाना चाहूँगा। माता-पिता को चाहिये कि वे अपने बच्चों में स्वयं विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता का विकास करें। इसके लिए यह आवश्यक है कि बच्चों और माता-पिता के बीच एक खुली बातचीत का माहौल होना चाहिए।
यदि परिवार तथा माता-पिता आरम्भ से ही बच्चे की एक्टिविटी की ओर ध्यान दें और बच्चों की प्रतिभा को विकसित करने में अपना पूरा योगदान दें, तो निश्चित ही बच्चे सुसंस्कृत, सभ्य, निडर, आत्म-निर्भर बनेंगे, और नये स्वस्थ समाज के निर्माता बनेंगे। भावी समाज का निर्माता इन्हीं बच्चों को बनना है। ये बच्चे ही कल के राष्ट्र का भविष्य होंगे।
इस अवसर पर मैं हर देशवासी से यह अपील करना चाहता हूँ कि वे बच्चों के लिए एक रोल मॉडल बनें और उन पर गर्व करें। मैं पुरस्कार जीतने वाले सभी बच्चों उनके माता-पिता और उनके शिक्षकों को बधाई देता हूं तथा आशा करता हूँ कि इस पुस्तक में संकलित कहानियों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाय ताकि इसमें जो निहित संदेश सभी देशवासियों तक पहुँचे।
ऐसे बहादुर बच्चों के लिए देश कितना भी करे, कम है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि Indian Council for Child Welfare इन प्रतिभाशाली बच्चों को स्कूली शिक्षा समाप्त करने तक आर्थिक सहायता प्रदान करती है तथा इंदिरा गांधी छात्रवृत्ति योजना के तहत व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए Scholarship देती है। इस सहयोग से इन बच्चों का भविष्य सुनिश्चित हो सकेगा। मेरा मानना है कि इन बच्चों को आपदा प्रबंधन, सिविल डिफेंस, राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) तथा NCC के तहत भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
धर्मनिरपेक्षता भारत के लोगों के डीएनए में है और उसी को याद दिलाने की जरूरत नहीं है।
अंत में, मैं इन बहादुर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ और श्री संजीव गुप्ता जी को उनके सराहनीय प्रयास के लिए धन्यवाद देता हूँ।
जय हिंद !”
Source : PIB